खुद से अंजान होता हूँ कभी
तो,
तेरी परछाई नज़र आती है
इन बाहों में...
तलाश है मुझे उस पल की,
जब तेरी आँखों को रख सकूँगा
हर गम से कोसों दूर,
तलाश है मुझे उस हल की,
जब इन नज़रों के सामने रख
पाऊँगा तेरा नूर...
यूँ तो एक एक ज़र्रा लगा
है,
हमारी खिलाफत करने में,
पर दिल में जब चाह है,
तो देर नहीं लगेगी राह निकालने
में...
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