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Tuesday, July 1, 2014

फाँसला !!!



बेवक़्त ही नमी  समाती है इन आँखों में,
तेरे अक्स की कमी सताती है इन साँसों में,
खुद से अंजान होता हूँ कभी तो,
तेरी परछाई नज़र आती है इन बाहों में...

तलाश है मुझे उस पल की,
जब तेरी आँखों को रख सकूँगा हर गम से कोसों दूर,
तलाश है मुझे उस हल की,
जब इन नज़रों के सामने रख पाऊँगा तेरा नूर...

यूँ तो एक एक ज़र्रा लगा है,
हमारी खिलाफत करने में,
पर दिल में जब चाह है,
तो देर नहीं लगेगी राह निकालने में...


                                                                                                  image courtsey:tele-pen-ny.blogspot.com

Thursday, February 27, 2014

सीधे दिल से!


कई बार अचानक ही हमारे लिए जो सबसे ख़ास इंसान होता है, उसके लिए मन में कुछ ख्याल उमड़ आते हैं...ये शायरियाँ कुछ उन्ही पलों को दर्शाती हुई...सीधे दिल से...आपके सामने ला रहा हूँ...


तेरे आंसू बेशकीमती हैं, इन्हें ज़ाया न कर,
तेरे लिए महज़ पानी होंगे, पर अनमोल मोती हैं वो मेरे लिए...
                               ……………
फक्र करें तो किसका करें, क्या चीज़ हमारी है,
ये दिल भी तुम्हारा है, और ये जां भी तुम्हारी है...
                               ……………
समेट लिया है सब कुछ तूने अपनी नज़रों में इस कदर,
एक झलक ठीक से देखे मुझे तो ये दुनिया मेरी हो जाए...
                               ……………
तेरी कमी आज कुछ इस कदर खल रही है मानो,
किसी दरिया में एक बूंद तक न हो पानी की...
                              ……………
हम हर पल मनाते रहे इस दिल को तुझे भूल जाने के लिए,
न माना तो याद आया कहाँ रह पाता है दिल धड़कन के बिना...
                             ……………
तेरे ऐतबार के लिए तो उम्र भर इंतज़ार कर लेंगे,
ये ज़िन्दगी भी निकल जाये तो कोई ग़म नहीं...

Wednesday, February 12, 2014

आरज़ू


गहराईयों में तेरे दिल की पनाह पाने को जी चाहता है,
              तेरी हंसी के किसी कोने में मुस्कुराने को जी चाहता है...

यूँ तो बिता दिया हमने तनहाइयों में अपना कल,
              मगर अब एक उम्र तेरे साथ बिताने को जी चाहता है...
      











                                                                                                image courtsey: s2.goodfon.com

Monday, February 10, 2014

इज़हार-ए-इश्क़

ये सप्ताह जो कि प्रेम को जाहिर करने का सबसे अच्छा समय होता है...और फिर ऐसे समय में अगर आप अपने प्रेम को और अपनी भावनाओं को कुछ अलग अंदाज़ में ही अपने प्रियतम तक पहुँचाएँ, तो इस से बेहतर और क्या हो सकता है...ये कविता प्रेम को कुछ उसी तरह से प्रकट कर रही है...
इज़हार-ए-इश्क़ "
 न जाने क्यों इतनी कश्म कशों में ये मन उलझा रहता है,
कहना तो चाहता है तुम से ये दिल पर ये फांसला कहने नहीं देता है...

भरी महफ़िल में भी ये ज़हन अब खुद को तन्हा पाने लगा है,
कैसे समझाऊं इस दिल को जो न जाने कबसे तुझे चाहने लगा है...

आईना देखता हूँ जब मैं तो मुझे इसके अकेलेपन पर यकीन आता है,
                                                  पर तस्वीर देखता हूँ जब तेरी तो रब पर यकीन हो जाता है...

  थक गया हूँ इस दिल को समझा समझा कर,
                                                  अब तू ही इस पर कुछ रहम कर दे,
  बिखर गया हूँ अधुरा रह रह कर,
                                                  अब तू ही आकर मुझे पूरा कर दे...
                                                                                      अब तू ही आकर मुझे पूरा कर दे...
                                                           

Friday, January 31, 2014

मंज़िल के निशान


आज क्यों ना निकले हम किसी ऐसी राह पर जिस पर हों सिर्फ़ जाने वालों के निशान...
रुख़ करें किसी ऐसे जहाँ की ओर जहाँ से मन को निकाल पाना फिर ना हो आसान...


हो जहाँ आज़ाद ख़यालों की दुनिया और अपना ही आसमान...
बिताएँ कुछ पल खुद ही के साथ और बन जाए खुद ही के कद्रदान...


उड़ने दें अपने मन को हवा के रुख़ में और करने दें उसे भी अपनी मंज़िल की पहचान...
देखें उस मंज़िल को गौर से और फिर शुरू करें उसी दिशा में कुछ काम...

चलते रहें निरंतर उसी राह पर और गंतव्य पर पहुँचकर ही फिर करें विश्राम...
चैन की साँस भरें तब और सुकून से देखें पूरे जहाँ को फिर खुद पर होते मेहरबान...


                                                                                                                                                               

                                                                                                                                                                                      image courtesy: wallpaperswide.com

Wednesday, January 29, 2014

व्यथा : स्त्री की अनदेखी वेदना !


आज के इस नये युग में जब हम ये कहकर कि "अब कहाँ होता होगा ऐसा !", महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की बातें करने से मुँह मोड़ लेते हैं...तब भी समाज में महिलाओं का एक बहुत बड़ा वर्ग तरह तरह की हिंसाओं का शिकार हो रहा है...जिस में घरेलू हिंसा भी एक है...यह कविता उन्ही कुछ पहलुओं को दर्शा रही है...अगर ये कविता थोड़ा भी सोचने पर मजबूर करती है किसी को ,तो मैं इस कविता को लिखना सफल समझूंगा...

"व्यथा : स्त्री की अनदेखी वेदना!"

घबराती हुँ सहमी रहती फिर भी कहती कुछ ना मैं,
चलती रहती हुँ काँटों पर फिर भी  कहती फूल उन्हें मैं...

यूँ तो जीवन को साँस देने वाली पर लगता नहीं साँस बची भी है थोड़ी खुद मैं,
अक्सर बेघर कर दी जाती हर बार ही खुद के घर मैं...

पूछती तो रहती हूँ आख़िर क्या बिगाड़ा है  जहाँ  का,
पर सन्नाटा ही सुनाई आता जवाब मैं या सुनाई आता ये तो रिवाज़ है यहाँ का...

किस से कहूँ कैसे कहूँ यहाँ कौन है मेरी सुनने वाला,
अक्सर मुँह फेर लेते लोग ये कह कर इस हाल मैं खुद को तुम ही ने डाला...

क्या यही वो दूसरा चेहरा है प्यार का, या रास्ता है भावनाओं के किसी बाज़ार का,
जो भी है ये जैसा भी पर अपवाद है इस प्रेम से उपजे संसार का...

Tuesday, January 28, 2014

नारीत्व की पुकार

देश में दिन पर दिन बढ़ रहे महिलाओं पर अपराध के चलते, ये मेरी तरफ से महिलाओं के शक्ति परिचय और उनके शक्ति वर्धन के लिए एक छोटा सा प्रयास...


"नरीत्व की पुकार" 

आज क्यों दब रही ये नारी,
जो सदियों से शक्ति स्वरुप है...
क्यों उसकी बर्बादी में लगे दरिन्दे,
जो श्रृष्टि सृजन का रूप है...

समाज तो देखेगा तमाशा,
कौन याद करे इंसानियत को...
जब कुछ वर्चस्व वाले ही गले लगायें,
इस पशुता और हैवानियत को...

नौ माह तक कोख में अपने,
जब तुम शिशु को पालती हो...
तो क्यों इन हैवानों के समक्ष,
अपना शौर्य खो डालती हो...

नारी का सच दिखता है,
माँ दुर्गा के अवतारों में...
तो कहीं सामने आ जाता वो,
लक्ष्मी बाई की तलवारों में...

उठा लिए थे शस्त्र उन्होंने,
असुरों के संहार में...
तुम भी चुन लो तलवारों को,
खुद ही के श्रृंगार में...

जगा दो आग ये कह कर,
क्या इज्ज़त इतनी सस्ती है...
शस्त्र चला कर उन्हें दिखा दो,
जो दुर्गा तुम में बसती है...